गुरु दक्षिणा कार्यक्रम आरएसएस।guru dakshina in rss

आज हम संघ में मनाए जाने वाले छः उत्सवों में से एक उत्सव श्री गुरु दक्षिणा के विषय में लिखने जा रहे हैं। यह मेरी निजी समझ के अनुरूप लिखा गया है , कृपया अधिक संशोधन की संभावना सदैव इसमें रहेगी। किंतु अभी जितना मैं व्यक्तिगत रूप से संघ के बारे में जानता हूं और संघ में होने वाली गुरु दक्षिणा कार्यक्रम से परिचित व अनुभव प्राप्त किया है वह लिखने का प्रयास कर रहा हूं।

 

guru dakshina in rss

गुरु दक्षिणा कार्यक्रम आरएसएस।

 

 

 

गुरु का ज्ञान और गुरु दक्षिणा –

 

गुरु ब्रह्मा , गुरु विष्णु , गुरु देवो महेश्वरा

गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुदेव नमः। ।

 

गुरु गोविंद दोऊ खड़े , काके लागू पाय

बलिहारी गुरु आपने , जिन गोविंद दियो मिलाय। ।

 

गुरु के विषय में जितना कहा जाए उतना ही कम साबित होता है। गुरु ही वह पहली कड़ी है जो ईश्वर से हमें जोड़ती है। माता को प्रथम गुरु माना गया है , माता ही जगत में बालक का परिचय कराती है। अपने बालक में संस्कार का बीजारोपण माता के द्वारा ही संभव है। अतः उन्हें गुरु का दर्जा दिया जाना लाजमी है।

माता के उपरांत गुरु का विशेष महत्व होता है , क्योंकि गुरु अपने शिष्य में उन सभी आवश्यक तथ्यों का भंडार करता है जिसके कारण वह सत्य – असत्य , मिथ्या आदि में फर्क कर पाता है। गुरु के माध्यम से ही ब्रह्मा के दर्शन होते हैं , गुरु ही ईश्वर का परिचय कराता है। अतः गुरु ईश्वर से पहले पूजनीय है बिना गुरु के ज्ञान यह सब संभव नहीं हो पाता है।

कबीर भी कहते हैं –

सतगुरु की महिमा अनंत , अनंत किया उपकार

लोचन अनंत उघारिया , अनंत दिखावण हार। ।

अतः गुरु की महिमा अपार है जिसके माध्यम से हमारे अंदर के नेत्र जागृत होते हैं , जिसके कारण हम अनंत देख सकते हैं। बालक को बिना गुरु के ज्ञान संभव नहीं है इसका उदाहरण आप किसी भी काल में अवतरित हुए महापुरुषों को देख सकते हैं।

स्वयं राम , कृष्ण और यहां तक कि एकलव्य जैसा एक आदिवासी बालक भी गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाया।  अतः ज्ञान प्राप्ति का माध्यम गुरु ही है।

 

जीवन में गुरु का महत्व –

गुरु के बिना यह जीवन सुना और निरर्थक है , गुरु के मार्गदर्शन से ही बालक अपने अंदर समाहित गुणों को बाहर निकाल पाता है और बाहरी दुनिया को जान पाता है , इसके बिना यह सब संभव नहीं है। गुरु ही एक माध्यम है जिसके द्वारा बालक अपने अंतर्ज्ञान को बाहर निकालता है और जगत सत्य और मिथ्या आदि में फर्क कर पाता है। इसी के माध्यम से वह सत्य – असत्य को पहचान पाता है।

गुरु के बिना ईश्वर की प्राप्ति नहीं की जा सकती , जीवन का लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह प्राप्ति शिक्षा और ज्ञान के बिना नहीं हो सकती और शिक्षा गुरु के बिना संभव नहीं है। अतः गुरु का जीवन में अधिक महत्व हो जाता है , गुरु भी एक व्यक्ति होते हैं , अतः उनमें भी कुछ दुर्गुण का होना लाजमी है। ऐसे में गुरु अपने शिष्य को यही संदेश देते हैं –  ” मेरे गुण को तुम ग्रहण करो और मेरे अवगुणों को तुम छोड़ दो। “ इस प्रकार के संदेश से गुरु और महान तथा पूजनीय हो जाता है।

 

गुरु के आदर्श –

गुरु समाज में पूजनीय होता है , उसके आदर्श से पूरा समाज प्रेरित होता है और सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होता है। समाज कल्याण की भावना उसमें जागृत होती है , यह सब गुरु के आदर्श के माध्यम से ही स्थापित हो सकता है। अतः गुरु में सत्य , निष्ठा और समाज सेवा की भावना होनी चाहिए बिना इसके गुरु के कार्य में पूर्णता नहीं हो सकती।

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में गुरु –

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन 1925 में डॉ केशव राव बलिराव हेडगेवार ने किया था। संघ की स्थापना सहज नहीं अपितु काफी संघर्षों और तपस्या के द्वारा संभव हो पाया। हेडगेवार जी ने पूरा जीवन संघ कार्य में होम कर दिया , जब उन्होंने विचार किया कोई भी कार्य बिना गुरु के संभव नहीं है और किसी भी कार्य का मार्गदर्शन बिना गुरु के नहीं हो सकता।

गुरु की तलाश काफी दिनों तक चलती रही , निष्कर्ष निकाला व्यक्ति अच्छाई – बुराई से बचा नहीं है। किसी एक व्यक्ति में अच्छाई है , तो उसमें बुराई भी है।

संघ का गुरु ऐसा होना चाहिए जो बुराई से मुक्त हो , उसमें केवल अच्छाइयां ही हो। वह सकारात्मक और दिव्य अनुभूति प्रदान करने वाला हो।  निष्कर्ष के रूप में भगवा ध्वज निकला जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में गुरु का स्थान प्राप्त है।

संघ में किसी व्यक्ति को गुरु नहीं माना जाता ना ही उनकी पूजा की जाती है। भगवा ध्वज व्यक्तिगत स्वार्थ आदि से परे है इसलिए यहां गुरु केवल और केवल परम पवित्र भगवा ध्वज ही है।

 

  • आपको जानना चाहिए कि सिख गुरुओं की जिस प्रकार हत्या की गई थी उसके बाद उनके धर्म में ग्रन्थ साहिब को ही सबसे श्रेष्ठ गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया गया।
  • शिवजी महाराज ने भी व्यक्ति गत श्रे न लेकर अपना भगवा ध्वज के छत्र में सभी युद्ध लड़े और विजय प्राप्त की।

 

संघ में हुए गुरु दक्षिणा की राशि का उपयोग –

संघ मजबूत और सशक्त राष्ट्र का निर्माण करने में अग्रणी भूमिका सदैव निभाता रहा है। राष्ट्रभक्ति और आदर्श समाज का निर्माण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पहली प्राथमिकता है। बाल संस्कार से लेकर प्रौढ़ व्यक्ति के जीवन में संस्कार तक की भूमिका राष्ट्रीय स्वयंसेवक निभाता है। इसके संसर्ग में आए हुए व्यक्ति समाज में पूजनीय हो जाते हैं , समाज इन पर आंख मूंद कर भरोसा करता है।

संघ में 6 उत्सव मनाए जाते हैं जिसमें श्री गुरु दक्षिणा एक है। श्री गुरु दक्षिणा के रूप में जो भी राशि स्वयंसेवक समर्पण के रूप में देते हैं। संघ उसका प्रयोग समाज के कल्याण में लगाता है। इसी राशि से –

प्रचारक के मूलभूत सुविधाओं के लिए एक छोटा सा अंश मात्र दिया जाता है , बाकी संपूर्ण राशि समाज कल्याण , आदिवासी क्षेत्र में विकास , शिक्षा , धर्म जागृति आदि के कार्यों में लगाया जाता है। जिसके माध्यम से भारत निरंतर सशक्त और विचारशील बन रहा है।

किसी को भी यह संदेह नहीं होना चाहिए की राष्ट्रीय स्वयंसेवक के आय का कोई और स्रोत है। वर्ष भर में श्री गुरु दक्षिणा से प्राप्त हुए राशि ही एकमात्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक के आए का स्रोत है , जो पूरे वर्ष खर्च किया जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस राशि को सरकार के सामने एक – एक पैसे का हिसाब देता है जो सराहनीय है।

 

संघ की कार्यशाला में चरित्र निर्माण की कहानी –

जम्मू कश्मीर के एक जिले में फौजी के साथ हुए मुठभेड़ में एक बालक का पूरा परिवार मारा जाता है। जब कुछ समय पश्चात बालक से पूछा जाता है वह बड़ा हो कर क्या बनेगा ? तो वह बालक कहता है मुझे आतंकवादी बनना है ! क्योंकि जिन फौजियों ने मेरे पूरे परिवार को मारा है , मैं उन्हें आतंकवादी बन कर मारूंगा।

फौजी उस बालक को आर एस एस RSS के कार्यालय लेकर आते हैं और आर एस एस को उसके पढ़ाई-लिखाई के लिए सौंप देते हैं।  धीरे-धीरे जब बालक पढ़ – लिखकर समझदार बनता है , उसमें देशभक्ति की भावनाएं भर जाती है , तब बालक से पूछा जाता है कि वह बड़ा होकर क्या बनना चाहता है ?

अब  बालक का विचार परिवर्तित और स्पष्ट जवाब था – ” मैं बड़ा होकर फौज में शामिल होऊंगा , और जो लोगों को गुमराह करके आतंकवादी बना रहे हैं , मै उन देशद्रोहियों को मृत्यु दंड दूंगा। ”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यह जानते हुए भी कि वह बालक प्रतिशोध की अग्नि में जल रहा है , फिर भी उस बालक की पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ देखरेख की और उसे एक कर्तव्यनिष्ठ और देश प्रेमी बनाया।  संघ के माध्यम से उसे जीवन में एक नई दिशा मिली।इस प्रकार के अन्य बहुत सारे उद्धरण देखने को मिलता है जिससे rss के प्रति श्रद्धा का भाव जागृत होता है।

 

गुरु दक्षिणा के लिए समर्पण का उच्च विचार  –

१ => गुरु दक्षिणा समर्पण का भाव प्रस्तुत करती है , एक रिक्शा चलाने वाला स्वयंसेवक अपने मन में यह संकल्प रखता है दिन में पहली सवारी से प्राप्त कमाई को मैं गुरु दक्षिणा के लिए निकाल लूंगा।

इस प्रकार वह रिक्शा चालक वर्ष भर अपनी प्रतिदिन की पहली कमाई गुरु दक्षिणा के लिए अलग करके रखता है और जब गुरु दक्षिणा का दिन आता है तो वह रिक्शा चालक अन्य स्वयंसेवकों से अधिक राशि गुरु को समर्पित कर पाता है। क्योंकि यह उसके वर्ष भर की समर्पण राशि थी।

बात यहां राशि के कम या अधिक होने की नहीं है , किंतु समर्पण का भाव एक दिन का नहीं होता बल्कि यह वर्ष भर के समर्पण का भाव होता है।  स्वयंसेवक अपने मन में यह भाव लेकर चलता है कि मेरी समर्पण भावना प्रतिदिन के हिसाब से होनी चाहिए।

 

२ => एक नन्हा सा बालक काफी अमीर और संघ विरोधी परिवार से ताल्लुक रखता था। किसी दिन वह घूमते फिरते शाखा में शामिल हुआ और वहां की पद्धति से परिचित हुआ। बालक शाखा के आदर्श खेलकूद आदि से इतना प्रभावित हुआ , और जब शाखा में 5 मिनट का बौद्धिक हुआ इसे सुनकर बालक ने संघ से जुड़ने का निश्चय किया क्योंकि घर वाले संघ विरोधी थे इसलिए बालक छुपकर संघ की शाखा में आने लगा।

धीरे-धीरे उसके व्यवहार में इतना परिवर्तन आया कि घर वाले भी उसके इस परिवर्तन से आश्चर्यचकित हो गए।  धीरे – धीरे उन्हें पता चला कि उनका बालक संघ की शाखा में जाता है , जिसके कारण वह काफी क्रोधित हुए और उन्होंने बालक के शाखा जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। कुछ समय बाद बालक अचानक गंभीर बीमारी का शिकार हो गया। डॉक्टर ने उसके बचने की संभावना को कम बताया बालक जब हॉस्पिटल में एडमिट था उसी समय संघ की शाखा में गुरु दक्षिणा का कार्यक्रम हुआ।

बालक को पता चला कल शाखा में गुरु दक्षिणा है , बालक अपने पिता से बड़े ही विनम्र भाव से आग्रह करता है और वचन लेता है कि वह उसका एक काम अवश्य करेंगे। वह अपने द्वारा वर्षभर जमा किए समर्पण भाव को गुरु दक्षिणा के दिन देकर आएंगे। पिता ने इंकार नहीं किया वह बालक के समर्पण राशि को लेकर गुरु दक्षिणा में प्रस्तुत हुए। वहां उन्होंने बौद्धिक सुना और उन्हें संघ के महत्व उसके आदर्श और विचार का पता चला।

बालक द्वारा भेजे गए समर्पण को उन्होंने विधिवत भगवा ध्वज के समक्ष अर्पण किया और संघ के अधिकारियों से क्षमा मांगी कि वह कितने विपरीत विचार रखते थे। वह अपने बेटे से भी अपने द्वारा लगाए प्रतिबंध के लिए क्षमा मांगते रहे।

कुछ समय बाद उनका बेटा दुनिया में नहीं रहा किंतु संघ के सभी स्वयंसेवक उसके बेटे के रूप में उसके सामने सदैव उपस्थित रहे वह व्यक्ति धीरे-धीरे संघ की शाखा से जुड़ा और वहां नित्य प्रतिदिन जाने लगा।

 

 

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