मनुष्यता का पाठ गणेश शंकर विद्यार्थी। बोध कथा। hindi story for freedom fighter

मनुष्यता का पाठ

hindi story for freedom fighter

Reporter Ganesh shankar vidyaarthi 

 

यह घटना उस समय की है , जब क्रांतिकारी रोशन सिंह को काकोरी कांड में मृत्यु दंड दिया गया। उनके शहीद होते ही उनके परिवार

पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। घर में एक जवान बेटी थी , और उसके लिए वर की तलाश चल रही थी। बड़ी मुश्किल से एक जगह

बात पक्की हो गई।  कन्या का रिश्ता तय होते देख कर वहां के एक दरोगा ने लड़के वालों को धमकाया , और कहा कि क्रांतिकारी की

कन्या से विवाह करना राजद्रोह समझा जाएगा , और इसके लिए सजा भी हो सकती है। किंतु वर पक्ष वाले दरोगा की धमकियों से नहीं

डरे और बोले यह तो हमारा सौभाग्य होगा कि ऐसी कन्या के कदम हमारे घर पर पड़ेंगे जिसके पिता ने अपना शीश भारत माता के चरणों

पर रख दिया। वर पक्ष का दृढ़ इरादा देखकर दारोगा वहां से चला गया।  पर किसी भी तरह इस रिश्ते को तोड़ने का प्रयास करने लगा।

जब एक पत्रिका संपादक को यह बात पता लगा तो वह आग बबूला हो गए और तुरंत उस दरोगा के पास पहुंच कर बोले मनुष्य होकर जो

मनुष्य का ही ना जाने वह भला क्या मनुष्य। तुम जैसे लोग बुरे कर्म कर अपना जीवन सफल मानते हो किंतु यह नहीं सोचते कि तुमने इन

कर्मों से अपने आगे के लिए कितने कांटे बो दिए हैं , जिन्हें अभी से उखाड़ना भी शुरू करो तो अपने अंत तक न उखाड़  पाओ। अगर किसी

को कुछ दे नहीं सकते तो उसे छीनने का प्रयास भी  ना करो संपादक की खरी – खोटी बातों ने दारोगा की आंखें खोल दी , और उस ने

न सिर्फ कन्या की माता से माफी मांगी , अपितु विवाह का सारा खर्च भी खुद बहन करने को तैयार हो गया। विवाह की तैयारियां होने लगी

कन्यादान के समय जब वधू पक्ष के पिता को ढूंढा गया तो संपादक उठे और बोले रोशन सिंह के ना होने पर मैं कन्या का पिता हूं। कन्यादान

मै  करूंगा। वह संपादक थे महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी। 

संघ क्या है जाने एक नज़र में 

 

 

 

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विद्या ददाति विनयम

कलयुग में शक्ति का एक मात्र साधन संघ है। अर्थात जो लोग एकजुट होकर संघ रूप में रहते हैं , संगठित रहते हैं उनमें ही शक्ति है।

 

शाखा के मनोरंजक खेल व्यायाम सहित 

 

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