संघ की शाखा।संघ की शाखा क्यों आवश्यक है। शाखा से चरित्र निर्माण कैसे होता है।

संघ की शाखा

( राष्ट्रप्रेम , एकता , धैर्य , शौर्य , सरल स्वभाव व ज्ञान का भंडार के रूप में )

 

संघ की शाखा

संघ की शाखा  एक साधारण सी शाखा होती है , किंतु स्वयंसेवक के लिए इस शाखा का अधिक महत्व होता है। इस शाखा का प्रभाव ही स्वयंसेवक के जीवन – मूल्यों और उसके आचार – विचार व स्वभाव आदि का निर्माण करता है।

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शाखा 1 घंटे या फिर अधिक से अधिक डेढ़ घंटे की होती है। यह प्रतिदिन नियमित समय पर लगती है व विकीर होती है। शाखा का जो समय निश्चित किया जाता है , ठीक उसी समय लगती व विकीर ( समाप्त ) होती है। इससे स्वयंसेवकों में समय पर कार्य करने व समय के प्रबंधन का अभ्यास होता है। प्रतिदिन शाखा में भगवा ध्वज लगाकर , ध्वज प्रणाम करके आरंभ व विकीर किया जाता है ।

यह 1 घंटे का समय स्वयंसेवक को सभी काम समय पर करने की आदत डालता है , यही नहीं इस 1 घंटे में राष्ट्रभक्ति वह समाज में एकात्मइयत्ता व भेदभाव जाति-पाति को बुलाकर जीवन में आदर्श मूल्यों की स्थापना करता है। 

अपने धर्म व संस्कृति में ‘ राम ‘ नाम जपने से मोक्ष मिलता है यह कहा गया है –

” राम नाम जप हूं रे भाई ”    (कबीर)

किंतु आज का मानव राम का नाम केवल मृत्यु के समय ही देता है। उसमें से भी कुछ मानव मरणासन्न पर भी राम का नाम नहीं लेते अपने अधूरे काम व घाटे – मुनाफे की बात सोचते हैं। 

संघ इस 1 घंटे की शाखा में राष्ट्रीय भक्ति गीत व बौद्धिक का भी समय निकालकर राम – राम , श्याम – श्याम का गीत करता है। 

दैनिक संघ की शाखा में निजी स्वार्थ ,हित , भेदभाव , जाति-पाति आदि सामाजिक विकार को भूलाकर लोग आते हैं। इसमें केवल एक दूसरे स्वयंसेवक को केवल नाम व काम के आधार पर जाना जाता है , जात – पात के आधार पर नहीं। किसी दूसरे स्वयंसेवक को यह पता भी नहीं होता कि दूसरा स्वयंसेवक किस जाति से है , ‘ सभी हिंदू हैं ‘ , ‘ हिंदू भाई हैं ‘ इस भावना से सभी को राष्ट्रहित में एक-दूसरे को गले लगाते हैं। 

 

 

संघ की शाखा क्यों आवश्यक है
संघ की शाखा क्यों आवश्यक है

संघ की शाखा में 1 घंटे के कुछ मुख्य कार्यक्रम

 

व्यायाम / योग

शाखा में 15 से 20 मिनट का समय व्यायाम और योग का होता है। इस कार्यकाल  का अधिक महत्व है , यह व्यायाम अथवा योग , शारीरिक व मानसिक तौर पर लाभकारी है। शरीर की मजबूती के लिए सभी स्वयंसेवक व्यायाम व मन की शांति और  एकाग्रता के लिए योगाभ्यास करते हैं। इस कार्यकाल से स्वयंसेवक को नित्य एक नई ऊर्जा मिलती है जो पूरे दिन उनका उत्साहवर्धन करती है , राष्ट्रहित के प्रति तन्मयता से कार्य करने की शक्ति प्रदान करती है , यह व्यक्तिगत तौर पर भी लाभप्रद है। 

 

 

खेलकूद

संघ की शाखा में खेलकूद का भी अत्यधिक महत्व है। खेल ‘ नेतृत्व की क्षमता ‘ का विकास करता है , तो सबको साथ लेकर चलने वह बराबर की सहभागिता का भाव भी उत्पन्न करता है। खेल  का विषय अति महत्वपूर्ण है , इसमें बिना किसी भेदभाव , छुआछूत के एक साथ मिलकर खेला जाता है। खेल – खेल में ही स्वयंसेवक सहायता और समस्या के निवारण / निदान का मंत्र भी ग्रहण करता है। 

एक छोटा सा स्वयंसेवक किस प्रकार खेल-खेल में बड़े – बड़े स्वयंसेवकों को हारता है , और नेतृत्व करने की क्षमता को ग्रहण करता है ,यह सभी प्रकार के संस्कार शाखा में ही संभव है। 

 

 

बौद्धिक

जिस प्रकार से व्यायाम , योग व खेलकूद आवश्यक है। उसी प्रकार मानव के लिए बौद्धिक विकास भी आवश्यक है। इस 5 से 10 मिनट के समय में ‘ महापुरुष ‘ के जीवन के बारे में उनके शौर्य , पराक्रम के बारे में बताया जाता है। प्रेरणादायक कहानीयां और समाज कल्याण का मंत्र दिया जाता है , व एक – दूसरे से साझा किया जाता है। इस बौद्धिक के समय स्वयंसेवक अपने ज्ञान का विकास करता है। यूं कहें कि जंग लगी हुई बुद्धि को तीव्र अथवा तिक्षण करता है। अपने वीर पूर्वजों तथा बलिदानियों को जानता है , समझता है अथवा उनके बलिदान को आत्मसात कर पाता है। 

 

गणगीत

5 मिनट तक का समय गीत के लिए निश्चित किया जाता है जिसमें राष्ट्रभक्ति , देशभक्ति की आराधना का गीत गाया जाता है , इस गीत को सामूहिक तौर पर गाया जाता है , जिससे स्वयंसेवकों में गीत गायन का अभ्यास होता है , अथवा झिझक भी दूर होती है। 

 

अंतिम 2 से 3 मिनट का समय शाखा विकीर का होता है जिसमें संघ की प्रार्थना ” नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि ” को गाया जाता है अथवा ध्वज प्रणाम कर शाखा विकिर किया जाता है , और फिर सभी स्वयंसेवक एक – दूसरे स्वयंसेवक को नमस्कार जी , राम-राम जी करते हैं चाहे स्वयंसेवक छोटा विद्यार्थी ही क्यों ना हो , आदर का भाव सभी के लिए समान होता है। 

 

संघ की शाखा में अथवा उसके क्रियाकलापों से स्वयंसेवक में क्या-क्या गुण आते हैं अथवा शाखा क्यों आवश्यक है ,एक नजर में –

१ संघ की शाखा से  नेतृत्व करने की क्षमता का विकास होता है।

२ संघ की शाखा के कारण  शारीरिक , मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है।

३ संघ की शाखा से  समाज में तारतम्यता स्थापित करने की क्षमता का विकास होता  है।

४ संघ की शाखा से  जाति-पाति से परे विचार करने की क्षमता का विकास करता  है। 

५ संघ की शाखा से  सामाजिक कल्याण के विषय में सोचने की प्रवृत्ति आती है।

६ संघ की शाखा से पूरे भारतवर्ष को अपना परिवार व विश्व – बंधुत्व की भावना को अपनाने का भाव आता है।

७ स्वयंसेवक किसी भी प्रकार के भय से भयभीत नहीं होता। 

८ स्वयंसेवक  विकट परिस्थितियों में भी धैर्य व साहस से कार्य करता है।

९ स्वयंसेवक छोटे – बड़े को समान आदर करने की भावना का विकास होता है

१० स्वयंसेवक  किसी भी स्वयंसेवक का सुख – दुख अपना सुख व दुख मानने लगता है। 

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इस 1 घंटे की शाखा के अतिरिक्त अन्य कई क्रियाकलाप होते हैं जैसे

 

 

स्वच्छता का प्रयत्न , लोगों को जागरूक करना 

स्वयंसेवक शाखा विकिर के बाद अपने संघ स्थान के आस-पास सफाई ,कूड़ा -करकट इकट्ठा हटा देना आदि स्वच्छता का ध्यान करते हैं।  तत्पश्चात आस-पास के जगहों पर सफाई के लिए प्रयत्न करते हैं , और लोगों को जागरुक करते हैं सफाई का महत्व बताते हैं , यहां तक कि प्रशासन सफाई की व्यवस्था नहीं करती , तो स्वयंसेवक स्वयं वहां एक सेवक की भांति सफाई की व्यवस्था कर देते हैं। 

 

 

अभावग्रस्त कालोनियों में सेवा

अभावग्रस्त कालोनियों में स्वयंसेवक अपनी सेवा निरंतर देते रहते हैं। वह सेवा हर एक प्रकार की होती है जैसे – शिक्षा , स्वास्थ्य , भोजन , वस्त्र इत्यादि। 

 

 

सामूहिक बैठक

संघ स्थान पर कई बातें , व विचार रह जाते हैं , आगे किस प्रकार से कार्य करना है ,  क्या रणनीति रहेगी किस स्वयंसेवक को किस प्रकार की आवश्यकता है संघ का कार्य कैसे विस्तार हो , मजबूत हो आदि बिंदुओं पर बैठक करके चर्चा व विचार किया जाता है। इस बैठक का समय डेढ़ घंटे का निहित होता है , बैठक का प्रारूप पूर्वनियोजित रहता है , समय को ध्यान रखकर बैठक का आयोजन किया जाता है। 

 

 

सहभोज

 

स्वयंसेवक इस भागती – दौड़ती जिंदगी में भी एक पल खुशी के चुरा लेता है , और अपने साथियों के साथ साझा कर पाता है। इसी का एक उदाहरण है ‘ सहभोज ‘ यह कार्यक्रम शाखा मंडली स्तर की होती है। सभी स्वयंसेवक अपने – अपने घर से भोजन बनाकर एक जगह बैठकर एक – दूसरे को भोजन साझा कर उस अप्रितम आनंद की अनुभूति कर पाते हैं। यहां स्वयंसेवक किसी भी जाति का हो कोई फर्क नहीं पड़ता संघ यह जानना भी नहीं चाहता कि मेरा स्वयंसेवक किस किस जाति से है। सभी स्वयंसेवक ‘ हिंदू हैं ‘ , ‘ हिंदू भाई हैं ‘ यह मानकर कार्य करता है।  इस प्रकार प्रेम और सम्मान की भावना का एक उदाहरण है ‘ सहभोज ‘| 

 

 

” संघ की शाखा खेल खेलने और कवायद करने का स्थान मात्र नहीं है। यह सज्जनों की सुरक्षा का , बिना बोले अभिवचन है। तरुणों को  अनिष्ट व्यसनों से मुक्त रखना वाला ‘ संस्कारपीठ ‘ है। महिलाओं के प्रति सम्मानपूर्ण आचरण का आश्वासन है , समाज पर अकस्मात आने वाली विपदाओं और संकटों में त्वरित तथा निरपेक्ष सहायता मिलने का आशा केंद्र है। राष्ट्रविरोधी तत्वों पर धाक स्थापित करने वाली शक्ति है।  और सबसे बढ़कर समाज जीवन के सभी क्षेत्रों में सुयोग्य कार्यकर्ता उपलब्ध कराने वाला ‘ विद्यापीठ ‘ है ”

( बाला साहब देवरस , तीसरे सरसंघचालक 1973 – 1994 )

 

 

अन्य शाखाएं

  • IT मिलन
  • साप्ताहिक शाखा
  • घोष वर्ग आदि

 

यह भी पढ़ें – संघ सरचालकों की शैक्षणिक योग्यता

विद्या ददाति विनयम

कलयुग में शक्ति का एक मात्र साधन संघ है। अर्थात जो लोग एकजुट होकर संघ रूप में रहते हैं , संगठित रहते हैं उनमें ही शक्ति है।

साथियों संघ के गीत का यह माला तैयार किया गया है , जो संघ के कार्यक्रम में एकल गीत गण गीत के रूप में गाया जाता है। समय पर आपको इस माला के जरिए गीत शीघ्र अतिशीघ्र मिल जाए ऐसा हमारा प्रयास है। आप की सुविधा को ध्यान में रखकर हमने इसका मोबाइल ऐप भी तैयार किया है जिस पर आप आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं।

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2 thoughts on “संघ की शाखा।संघ की शाखा क्यों आवश्यक है। शाखा से चरित्र निर्माण कैसे होता है।”

  1. aapki site par geet aadi copy paste nahi ho pa rhe hai. jis karan print kar ke patrak bnane me dikkat aa rahi hai. is pratibandh ka kya labh hai samajh nahi aaya.

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    • Aapko kon sa geet chahiye kripya about us , contact us me diye gaye mail id par send karen hum aapko bina bilambh ke geet denge

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